हौं पठई कबकी मत लैंन, सौ तेरैं कहा कितहू मन भायौ।

कौंनसी बातन कैसी करै, नहिं जांनत कैसैं कहा समझायौ॥

और सीमेटि सबै चितकी, मिलबौ करिए अति ही अकुलायौ।

तू सुनि री बलि चंदमुखीसों, चलै क्यौं चंद सिरांहनै आयौ॥

स्रोत
  • पोथी : नेहतरंग ,
  • संपादक : श्रीरामप्रसाद दाधीच ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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