बिगरी बिगरी उनकी बिगरी, इनकी बिगरी इनकी बिगरी।

जिन नाम लियो भज्यो भवतारन, श्याम बिना ज्यूं सूनी नगरी।

वाकी रैत लुटै कुन भीर करै, आभ फट्यो लगै थिगरी।

सांईदीन कहै निज नाम लियां बिन, ना सुधरै बिगरी बिगरी॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी साहित्य संग्रह संस्थान दासोड़ी रै संग्रह सूं ,
  • सिरजक : सांईदीन दरवेश
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