ऋद्धि समृद्धि रहैं इक राजी सुं, अेक करै है ह हांजी हांजी।
अेक सदा पकवान अरोगत, अेक न पावत भूको भी भाजी।
अेक कुं दावतबाजी सदा, अरु अेक फिरैं हैं पईसै के प्याजी।
युं धर्मसीह प्रगट्ट प्रगट्ट ही देखो, बे देखो बखत की बाजी॥