ऋद्धि समृद्धि रहैं इक राजी सुं, अेक करै है हांजी हांजी।

अेक सदा पकवान अरोगत, अेक पावत भूको भी भाजी।

अेक कुं दावतबाजी सदा, अरु अेक फिरैं हैं पईसै के प्याजी।

युं धर्मसीह प्रगट्ट प्रगट्ट ही देखो, बे देखो बखत की बाजी॥

स्रोत
  • पोथी : धर्मवर्द्धन ग्रंथावली ,
  • सिरजक : धर्मवर्द्धन ,
  • संपादक : अगरचंद नाहटा ,
  • प्रकाशक : सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम