रीस सुं बीस उद्वेग बधै, अरु रीस सुं सीस फटै नितही को।

रीस सुं मित भी दांत कुं पीसत, आवत मानुं खईस कही को।

रीस सुं दीखत दुर्गति के दुख, चीस करंत तहां दिन ही को।

युं धर्मसीह कहैं निसदीह, करै नहीं रीस सोइ नर नीको॥

स्रोत
  • पोथी : धर्मवर्द्धन ग्रंथावली ,
  • सिरजक : धर्मवर्द्धन ,
  • संपादक : अगरचंद नाहटा ,
  • प्रकाशक : सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम