स्तुति
राम निरंजन ब्रह्मजी, पुनि सतगुरु सब दास।
जन चेतन वंदन करै, करि करि बहुत हुलास॥
अंग
राम नाम सुण्यौ श्रवणा बिसवास गह्यौ अर भर्म निकार्यौ।
है निज तत्त भगत्ति को कारण अैसो हि जाणि हृदा मधि धार्यौ॥
सांस उसांस रट्यौ निसिवासर विष लागत पल हूं न बिसार्यो।
चेतन या विधि धारणा धारत रसना हि ऊपरि प्रेम पधार्यो॥
प्रेम प्रकास अनंद भयौ रसना रस के ज सुवाद लगौ।
भैभीत भई जु भजंन करै यूं लोभ सुं लागि फिरै ज भगी॥
एह साधन साधि पिछाणि करी बिसराइ हु नाहिं टरै जु टगी।
जन चेतनदास बिचारि कहै इहिं मारग चालत मौजां लगी॥
अजामेळि सूं और अधिक्क किसौ दुजि होय कै मद्द र मांस खायौ।
निसिवासर बेसा के संगि रहै विषै भोग महीं सब आव गुमायौ॥
राम को नाम लियौ सुत के हित अंति समै आइ संत बचायौ।
जन चेतन कै म्हमा जाणि भजै भया तास को पुंन तो जाय न गायौ॥
राम को नाम दियौ गुरुदेव जी न्हाल कियौ सुखिया मोहि कीन्हौ।
तीन हि लोक को सार सो नाम है आनंद को घर प्रेम में भीन्हौ॥
सो सुमर्यां सुधरै दोउ लोक हि राम रटै जेहि सरबस कीनौ।
करि किरपा र दियौ गुरुदेव जी चेतन ने धरि सीस पै लीनौ॥
राम को नाम असी विधि लीजिए जागै धणी जब चोर ज्यूं ध्यावै।
ज्यूं कोइ गांव में लाय लगै सब दौड़ि उठै इक सोक बुझावै॥
ताते हि लोक लुहार मंडै बेगा बेगि सो कूटि र संधि मिलावै।
जन चेतन कहै अैसे राम भज्यां भौ सिंध तिरै सुखसागर पावै॥