राधेसौं आजु कछु नंदनंदन, भारी हियें मन मांन भर्‌यौ है।

सारी सखीन मनांवनकौं, मिलिबेकौं तऊ मनहूं कर्‌यौ है॥

ता छबिकौं लखिकैं छकिकैं, मन मेरौ यौं उपम्मताई तर्‌यौ है।

सांझ समैं अरबिंदनपैं ससि, सोलै कलानि लयें उघर्‌यौ है॥

स्रोत
  • पोथी : नेहतरंग ,
  • संपादक : श्रीरामप्रसाद दाधीच ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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