पीपासर वास परगास भयौ, दालद मेटण आप दई।

पति प्राण अधार पंवार तणै कुल, आयौ आप अलेख सही।

बीछड़ीया बाड़ै विगत विसंभर, कोड़या कारण कौल कीयौ।

हरि हांसा मात सुपात सुं परसण, लोहट घरि अवतार लीयो।

जांका पार अपार गिंवार जांणे, सार सिरजन हार तणी।

गुर सोवन धार प्रगटयौ सिंभु, संभराथल सुभियांन धणी।

आकार करा खिट वरण निवाजण, भक्ति उधारण भाव कीयो।

सोइ जन तारण झांभेश्वर जुग मै आई चक अवतार लीयो॥

स्रोत
  • पोथी : पोथो ग्रंथ ज्ञान - संग्रह ग्रंथ ,
  • संपादक : कृष्णानंद आचार्य ,
  • प्रकाशक : जाम्भाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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