पहलाद अखाड़ै धर प्रवाड़े, फीरत जुग कल्याण कीयौ।
करूणा करि साध तरासत जुगमां, नेम करे निज नांव लीयो।
विरत जन बाड़ै विगत पड़ी, साधा दुख संकट बहोत दीयो।
सिधां सिर सूंपै न मान संका, बालक विरध जुवान भई।
पुलीया पग छाड़िति कांपति राखण, आयो आप अलेख सही।
आकार करा खिट वरण निवाजण, भक्ति उधारण भाव कीयो।
सोइ जन तारण झांभेश्वर जुग मै आई चक अवतार लीयो॥