मंद भयौ पियकौ मुख चंदसौ, चंद्रिका हौंन चली सरनैं है।

सौंतिनके खुले नैंन-सरोज, हितू चित जैसैं मुद्रा बरनैं हैं॥

मोतिनहार नखित्रन-जोति, यौं मानसमैं उपमां झरनैं हैं।

जेठ समैं मांनौं तापसौं तूटिकैं, छूटि परी रबिकी किरनैं हैं॥

स्रोत
  • पोथी : नेहतरंग ,
  • संपादक : श्रीरामप्रसाद दाधीच ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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