जा दिन तैंभये रावरैं मांन, सम्हारै न बातनकी गहराई।
वा दिनकी उन बातनपैं बलि, कीजिये क्यौं यतनी सतराई॥
वाकै भये मुख रूखैं कछू, ज्यौं सबै सखियानकी उप्पम छाई।
रातिकै आंवन पांतिकी पांति, मनौं जलजातकी जात लजाई॥