जदि ससिहर सुर सुमेरन सागर, अरण विवाणन आकारौ।

जदि इंद्र उर धन जेरन जाखा, सेत धात संसारौ।

सत सुमरण सील संतोष सजण, मान अपमान अहंकारौ।

असक्त तिन आसत रासन, त्रीस्ना दान दुर्बल दातारो।

जदि नाद वेद उमेद आरंभ, तदि तूं कायम करतारौ।

आकार करा खिट वरण निवाजण, भक्ति उधारण भाव कीयो।

सोइ जन तारण झांभेश्वर जुग मै आई चक अवतार लीयो॥

स्रोत
  • पोथी : पोथो ग्रंथ ज्ञान - संग्रह ग्रंथ ,
  • संपादक : कृष्णानंद आचार्य ,
  • प्रकाशक : जाम्भाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै