जदि धरमन ध्यान कर मन ही करसण, विणजन बांधी बोपारौ।
वाणोटन हाटक लोभ करसण, सकि तिन सुरनर संसारौ।
उरवार न पार अटक नहीं अरियण, सोच विचार न आचारौ।
जदि कागद कलम कुराण न काजी, तदि तूं कायम करतारौ।
आकार करा खिट वरण निवाजण, भक्ति उधारण भाव कीयो।
सोइ जन तारण झांभेश्वर जुग मै आई चक अवतार लीयो॥