जदि आरंभ कौरंभ इंदव, ईश्वर इला अंबर अटल टलौ।

अरि आसिक जीव जबर नहीं, जो लो जल पाखाण पातालौ।

पड़ताल पवंग भवंग नहीं वासिक, भांग भवण भूपालौ।

बरियामन कांमन दांमन दुसमंण, तामस तेज मांण मलौ।

तदि हूंतो तूंही त्रीकम अगम अगाध, अजोनी सिंभू अलख निरंजण अकल कलौ।

आकार करा खिट वरण निवाजण, भक्ति उधारण भाव कीयो।

सोइ जन तारण झांभेश्वर जुग मै आई चक अवतार लीयो॥

स्रोत
  • पोथी : पोथो ग्रन्थ ज्ञान ,
  • संपादक : कृष्णानंद आचार्य ,
  • प्रकाशक : जाम्भाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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