जदि अगति मुकति भगति, नहीं मैंजल जख जोगणि वीर ने बेतालौ।

जदि वा सम वेद वणासन वसुधा, ब्रह्म बाड़ी फूल फलौ।

जदि रूति रैण बरण नहीं वासर, मांड खंड खेड़ खलौ।

जदि रीझ बूझ सलामंन सेवा, धोक ध्यांन थांन थलौ।

तदि हुं तो तूं ही त्रीकम अगम अगाध, अजोनी सिंभू अलख निरंजण अकल कलू।

आकार करा खिट वरण निवाजण, भक्ति उधारण भाव कीयो।

सोइ जन तारण झांभेश्वर जुग मै आई चक अवतार लीयो॥

स्रोत
  • पोथी : पोथो ग्रंथ ज्ञान - संग्रह ग्रंथ ,
  • संपादक : कृष्णानंद आचार्य ,
  • प्रकाशक : जाम्भाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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