हिरणाख भयौ बलवान अति, प्रथवी सब लैर पयाल सिधायौ।

कूक करी अमरां करूणाकर, रूप वाराह धरे उठ धायौ।

मार निसाचर दीध सुरां सुख, राख प्रथी जुग मे जस थायौ।

'ईसरदास' की वेर दयानिध, नींद लगी कन आळस आयौ॥

स्रोत
  • पोथी : मूल पांडुलिपि में से चयनित ,
  • सिरजक : ईसरदास बोगसा ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : विश्वम्भरा पत्रिका, प्रकाशन स्थल-बीकानेर