घोर भयो जुध इम्रत के हित, रांम सुरां हित कारण धायौ।

आय रमापत चक्र चलाय के, सीस विरोचन काट बगायौ।

अम्रत धेन गजंद्र धनंतर, रूंख रंभा सुरपत्त सो पायौ।

'ईसरदास' की वेर दयानिध, नींद लगी कन आळस आयौ॥

स्रोत
  • पोथी : मूल पांडुलिपि में से चयनित ,
  • सिरजक : ईसरदास बोगसा ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : विश्वम्भरा पत्रिका, प्रकाशन स्थल-बीकानेर