रातिके जागतही बृजचंद, निहारत आरसी ज्यौं सरसी है।

पीछैसौं आय मनांवनकौं, सुखसौं प्रतिबिंब दै कैं परसी है॥

आपनैं कंठकौ हार हियें पर, डारत उप्पमता दरसी है।

फेरि फिरैं मुखचंदकी ओर, मनौं करि कांम-कमान कसी है॥

स्रोत
  • पोथी : नेहतरंग ,
  • संपादक : श्रीरामप्रसाद दाधीच ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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