केती मजूरी सुधारी कमांन, भर्‌यौ भलका जिहिं बीच सराहैं।

हेरि समुद्रसौं लाल मगायकै, लाखनि साथ लई लखि लाहैं॥

ल्याई तिहारे सिंगारकैं काजु, छकी मति रीझि लखैं छबि ताहैं।

मोंलके मैघेसौ मोती मनौं, नथ मोतिय-चंद मिल्यौ मुख चाहैं॥

स्रोत
  • पोथी : नेहतरंग ,
  • संपादक : श्रीरामप्रसाद दाधीच ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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