देवन के रमापति के दोऊ धाम की वेदन कीन बड़ाई।

शंख रु चक्र गदा पुनि पद्म स्वरूप चतुरभुज की अधिकाई॥

अमृत पान विमानन बैठवौ नागर के जिय नेक भाई।

स्वर्ग बैकुंठ में होरी जो नाहीं, तो कोरी कहा ले करै ठकुराई॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी भाषा और साहित्य ,
  • सिरजक : नागरीदास ,
  • संपादक : मोतीलाल मनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : छठा संस्करण
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