सैणल का दरबार सजाकर, रैणव आकर मात रिझाता।

आय मनाय सभी जन ऊछब, पात सभी मिल दर्शण पाता।

आभ उड़े समळी शुभ आठम, लालस भोग प्रभात लगाता।

बीह भुजा थळ सोन विराजत, मैर रखे जुढियै धर माता॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : सुआसेवक कुलदीप चारण
जुड़्योड़ा विसै