ब्रह्म स्वरूप भया मिलि ब्रह्म मै,

वारन पार तहां ल्यो लाई।

नूर स्वरूप शरीर किया जिन देव,

निरंजन की नित गाई।

ज्योति स्वरूप हुआ निज स्वामी,

जी नाम सुधारस पीया रे भाई।

हो दादू की गति अगाध अगोचर,

छीतरदास लखी नहीं जाई॥

स्रोत
  • पोथी : पंचामृत ,
  • सिरजक : छीतरदास ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा,दादू महाविद्यालय मोती डूंगरी रोड़, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम