इन देह की खेह सुनो हुय है, सब ग्रेह सनेह दिखावन के।

कितने ही भये इनसे अब लो, जग जीव जिते उत जावन के।

'चिमनेस' नसीत के अक्षर ये, परमारथ के मन भावन के।

नर औसर चूक गये सो गये, नह दिन पावन आवन के॥

स्रोत
  • पोथी : मूल पांडुलिपि ,
  • सिरजक : चिमनजी दधवाङिया
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