भदों की कारी अंध्यारी निसा झुकि बाद मंद फुही बरसावै।

स्यामाजू आपनी ऊंची अटा पै छकी रस रीति मलारहिं गावै॥

ता समै मोहन के दृग दूरतें आतुर रूप की भीख यों पावै।

पौन मया करि घूंघट टारि दया करि दामिनी दीप दिखावै॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी भाषा और साहित्य ,
  • सिरजक : नागरीदास ,
  • संपादक : मोतीलाल मनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : छठा संस्करण
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