भदों की कारी अंध्यारी निसा झुकि बाद मंद फुही बरसावै।
स्यामाजू आपनी ऊंची अटा पै छकी रस रीति मलारहिं गावै॥
ता समै मोहन के दृग दूरतें आतुर रूप की भीख यों पावै।
पौन मया करि घूंघट टारि दया करि दामिनी दीप दिखावै॥