अपने गुण दूध दीये जळ कुं, तिनकी जळ नैं प्रीतिफळाई।
दूध के दाह कुं दूर कराइ, तहां जळ आपनी देह जलाई।
नीर विछोह भी खीर सहै नहीं, ऊफणि आवत हैं अकुळाई।
सैंन मिल्यैं फुनि चैंन लह्यौ तिण, अैसी धर्म्मसी प्रीति भलाई॥