अपने गुण दूध दीये जळ कुं, तिनकी जळ नैं प्रीतिफळाई।

दूध के दाह कुं दूर कराइ, तहां जळ आपनी देह जलाई।

नीर विछोह भी खीर सहै नहीं, ऊफणि आवत हैं अकुळाई।

सैंन मिल्यैं फुनि चैंन लह्यौ तिण, अैसी धर्म्मसी प्रीति भलाई॥

स्रोत
  • पोथी : धर्मवर्द्धन ग्रंथावली ,
  • सिरजक : धर्मवर्द्धन ,
  • संपादक : अगरचंद नाहटा ,
  • प्रकाशक : सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम