अगम ही चाल अगम ही ज्याल,

अगम ही नाम रट्या ररंकारा।

अगम ही ज्ञान अगम ही ध्यान,

अगम ही भाव भगति विचारा।

अगम ही प्रेम अगम ही प्रीति,

अगम ही शील संतोष सु सारा।

हो छीतरदास अगम ही दादूजी,

अगम ही नाम जप्या इकतारा॥

स्रोत
  • पोथी : पंचामृत ,
  • सिरजक : छीतरदास ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा,दादू महाविद्यालय मोती डूंगरी रोड़, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम