आपही जो गुन की गति जानत, सोई गुनानि कौ संग गहैं हैं।

जो धर्मसि गुण भेद अभेद, गुमार कहा सु गुनी कुं चहैं हैं।

दूर सुं दौर्यो ही आवें दुरेफ, जहां कछु चारिज वास वहैं हैं।

अेक निवास पैं पास आवत, मैंडकु कीच कैं बीचि रहैं हैं॥

स्रोत
  • पोथी : धर्मवर्द्धन ग्रंथावली ,
  • सिरजक : धर्मवर्द्धन ,
  • संपादक : अगरचंद नाहटा ,
  • प्रकाशक : सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम