आजु मैं देखी है गोपसुता मुख, देखै तै चन्द्रमा फीकौ व्है जोतो।
गोर गुलाब की आबहू तैं, गहराई गुराई कैं संग समोतो।
सिंधुसुता सम ताकैं समांन, सो वा बलिकौ रंग ओर अन्होतो।
होती जो कुंदन कै अंग बास जौ, जौ कहुं केतकी कांटौ न होतो॥