आजु कछूं बलि राधिकासौं, हरि सोहत रूठिकै बैठे अपूठैं।
आय घिरी चहुं औरनतैं, यौं मनावन लागी सखीन अहूठैं॥
ता छबिकौं लखिकैं इहि भायसौं, दौरी यों उप्पमता न अनूठैं।
चंदमुखी चहुं औरनतैं, मनु चंदकौ चंद मनावत रूठैं॥