पाहण पुहप्पां पूज, माणस अधमोला मिणो।

सखरी थांरी सूज, आखै जुग रा अधपती॥

पलटै सो परवार, पलटै जग सोवर परो।

चरणां चलणूं चार, पण नहं पलटूं अधपती।॥

बाय नेह रा बीज, नेह भूल फळ नै निरख।

रमो घणां कर रीझ, आद जूगां रा अधपती॥

विवध बणाव बणार, रिया बदलता अजैलग।

धरा जीवणा धार, ओर बदलो अधपती॥

फळै सगळा फूल, पण नहं छंडै फूलणूं।

भरम छंडो भूल, आद अनादी अधपती॥

निरफळ म्हारो नेह, बणसी थांरो बिड़द बड।

दिवलो खो निज देह, ऊजाळै घर अधपती॥

पेख नुंवो परभात, हूंणी अण हूंणी हुई।

रही ऊजळी रात, आज हूंत घण अधपती॥

मोभी मनड़ै मूक, मनवारां मिस मुळकवै।

हिवड़ै हंदी हूक, अधरां पर अधपती॥

मन समदर मत बांध, सपनै कीरत रै सटै।

मोरो कहियो मान, आभो बंधै अधपती॥

दे प्राणां रो दांन, बिसवास कीन्हो वळे।

जासी दाझ जुगांन, अधर झुलाया अधपती॥

अजब भरोसो आज, चरणा रो चित में चढयो।

लाजां मरती लाज, अजै हारी अधपती॥

जस अपजस जीभ, वण नकीब बाखांणवै।

रै इण मुखही रीझ, अबैं खीज क्यूं अधपती॥

लख लूटंतां लाज, गाज बणै गाळय गरब।

तुरत उछाळै ताज, अबळा ठोकर अधपती॥

राजकुळां री रीत, बीतै जुग बातां बडी।

मनड़ै हंदा मीत, प्रीत अमर व्है अधपती॥

कुड़ कांण रै काज, लाज लूटो लाजरी।

फूड़ मांण रै पाज, कंई बांधो अधपती॥

होयी अणहोणीह, खोयी जग प्रीतज खरी।

जोयी जी जोणीह, अजब भाग बस अधपती॥

नरां नारियां नेह, मेह जिंयां समझो महिप।

छित रो लहै छेह, तेह रळावै अधपती॥

मुरत दगड़ री मेल, जिग्ग रचांवा इण जगत।

खित टाबरियां खेल, आछा रचिया अधपती॥

स्रोत
  • पोथी : भारतीय साहित्य रा निर्माता: शंकरदान सामौर ,
  • सिरजक : शंकरदान सामौर ,
  • संपादक : भंवरसिंह सामौर ,
  • प्रकाशक : केंद्रीय साहित्य अकादमी