अलगौ जाय रथ आणि, सीता वैसांणी सती।
प्रभु वाकारि न पांणि, चोरी हरि घरि चालियौ॥
ग्रिध औलखी गडूरि, सीता क्रोसंती सती।
उडै जटाय अडूरि, रथ लंकेसर रोकियो॥
रथ ग्रधराज म रोकि, जावंण दे रामंण जपै।
ले मेल्हिसि जंमलोकि, मूरिख कांय परकजि मरै॥
रांमण दसरथ राय, मीत सखा नित माहरौ।
जंनक सुता किम जाय, व्रिध हौं ग्रिध ऊभै वधु॥
जुध दहकंध जटायु, चंच नखां पंख चापटां।
रथ भागौ पंख राय, छत्र धजा घोड़ां सहित॥
साचवि आवध सूर, भिड़ि दसमुख वीसे भुजै।
चंच पांखा कीय चूर, गोडवियो राकस गिरध ॥
ग्रीध वडौ गजगाह, कीधौ वहि दहकंध सौ।
सजि कंध रथ सीताह, गौ मारगि गयणांगिरै॥
कुंदन सदन अंनेक, मंणि हीरा मंडित महल।
मांहि पहर खिणि मेक, मेल्ही आंणि महीथली॥
सकल दिखाए सीत, वयंड जोध लंका विभौ।
डाकी दुरित दयंत, दळ भायां बळ दीकरां॥
नर सुर जखि लखि नारि, पंखि जोयंणि पंख पद्मिणी।
सुंदरि सहि सिरदारि, नाग कन्या देवांगना॥