द्रोपद हेला देय, वेगौ वसुदेव—रा।

लाज राख, जस लेय। लाज गयां व्रद लाजसी॥

सारौ पलट्यो साथ, कूड़ विचारी कैरवां।

हरि इज्जत नैं हाथ, सह मिल घालै सांवरा॥

पति मो वचन प्रमाण, प्राण प्रबळ तज बैठिया।

कौरण अवसाण, सबळौ पायौ, सांवरा॥

खरौ मूझ लजखेत, ऊभां धणियां ऊजड़ै।

चित में कीजै चते, वेगौ आ, वसुदेव—रा॥

पति मो देखै पांच, धरतां पग धूजै धरा।

आवै लाज नै आंच, धर नख सुं कुचरै धवळ॥

सासू अरियां—साल, जाया पांचूं जो मरद।

खोटौ रचियौ ख्याल, सब जग हंसे ज, सांवरा॥

पति मो पाया पांच, पत किण सूं जाचूं प्रगट।

लागै कुळ नैं लांच, सांच राखज्यो, सांवरा॥

मिल दुस्टी आज, पाज अनादि पाळटै।

लाजै कुळ री लाज, सौ कोसां सूं, सांवरा॥

बोवै विख रा बीज, दिन—दिन होवै उभट।

खोवै कर—कर खीज, सुख नंह सोवै, सांवरा॥

ओठा दिन आयाह, खोटा मग कैरव खड़्या।

जुध पांडव जायाह, सारा झगड़ै, सांवरा॥

होय सभा हमगीर, दुस्सासण खैंचै दुस्ट।

चिळ्यो पुराणो चीर, सिर सूं चाल्यो, सांवरा॥

निलजी कौरव नार, के ऊभी मुळक्या करै।

तो कुटम उधार, देणा सो लेणा दुरस॥

नागर आज्योह, चीर वधाज्यौ चौगणो।

जिण मग मत जाज्योह, लाखीणी मो लाज ले।॥

दुख में करस्यो देर, फेर किसी करस्यो फते।

वरदायक इण वेर, साय कराज्यौ, सांवरा॥

जो लज अब जासीह, तो नंह आसी अवस।

दामोदर दासीह, द्रोपद प्यासी दरसणां॥

चाहे चीर खंचाय, पांडव घर द्रोपद प्रगट।

जीव लाज संग जाय, सांची जाणो, सांवरा॥

मो मन पड़ियो मोच, ‘आव’ कैयां आयो नहीं।

साड़ी रो नंह सोच, सोच विड़द रौ, सांवरा॥

बणै सुयोधन बीन, जानी दुस्सासण जिसा।

नामी सगा नवीन, तोरण गा द्रोपद तणै॥

अंग छायां आदीह, तिण संग लाधी तेल में।

जिण मछ पर जा दीह, साधी बाणां, सांवरा॥

अधपत तज आसाह, नांख निसासां नीसरै।

पळटै अब पासाह, सो अरजन कर, सांवरा॥

आसा तज आयाह, पाछा कौरव पावणा।

उण दिन रा दायाह, साझै मो सूं, सांवरा॥

सुरपत रो सारोह, कारज भर मन बद कियो।

धवळ क्रीट धारोह, सदा जिताया, सांवरा॥

तन मो तिल तेतोह, आज सभा बिच ऊघड़ै।

हरि पांडव हेतोह, हूं जाणूं होता नहीं॥

ले छै अबळा लाज, सबळा व्है बैठा सको।

गुट्ट सभा पर गाज, सटकै राळो सांवरा॥

मिनिया मंजारीह, अगन प्रजाळी ऊबरया।

बरती मो बारीह, सुवै जागै, सांवरा॥

रज्जसुला नारीह, कथा गोप, किण सूं कहूं।

समझौ हर सारीह, सरम धरम री, सांवरा॥

द्रोपद दुखियारीह, पूकारी अबळा पणै।

मदती हर, म्हारीह, करुणाकर करस्यो करां॥

सुरभी दियो सराप, पाप तिको भुगतण पड़्यो।

इक हरि, रच्छक आप, सदा बचाई, सांवरा॥

लेतां तिरिया लाज, पति बोदो आडो पड़ै।

नर बैठा आज, सिंघ स्याळ व्हे, सांवरा॥

आवण दुरवासाह, स्त्राप देण भुगतण सही।

ईश्वर तूं आसाह, सांची पूरी, सांवरा॥

जग अन्तर—जामीह, सेवक सुखधामी सदा।

सो अबकै स्वामीह, साद सुणवै, सांवरा॥

लाखा—ग्रह री लाय, तैं पांडव राख्या दिन।

वडा किया वन मांय, साथ छोड्यो, सांवरा॥

प्याला जहर पिवाय, भीम गंग पटक्यो हुतो।

पनग—लोक परणाय, साथै ल्यायो, सांवरा॥

देखै भीसम द्रोण, जेठ करण देखै जठै।

को हरि, वरजै कोण, लाज रूखाळा, लाज लै॥

सुसर कोऊ साथ, अंध सभा न्रप अंध री।

होणहार अप—हाथ, देखो भीसम द्रोण रो॥

होसी जग में हांस, द्रोपद नागी देखतां।

साड़ी पहली सांस, सटकै ले ले, सांवरा॥

रटियो ‘हरि’ गजराज, तज खगेस फिर तारियो।

आवण देरी आज, सो नंह कीजै, सांवरा॥

लड़कापण प्रहलाद, आद थनैं कीनो अवस।

विण रो राख्यो वाद, सिंघ—नाद कर, सांवरा॥

आसा राखी एक, सुमिरण तो निस—दिन सदा।

टाबर धू री टेक, राखी तूं, वसुदेव—रा॥

लारै भगतां लाज, लंकागढ रघुपत लड़्या।

करण भभीखण काज, सिर दस तोड़्या, सांवरा॥

राळ्यो जळ सुरराज, धर अंबर इक धार सूं।

करै अभय ब्रज काज, कर गिर धार्‌यो, कान्हड़ा॥

विप्र सुदामा वार, कोड़ां धन पायो कठां।

वधण चीर विस्तार, सरधा घटगी, सांवरा॥

रैगर सजन रट्योह, नाई छींपा नाइका।

घर उण रै घट्योह, सरम धरम रम, सांवरा॥

जाणै किसो अजांण, तीन लोक तारण—तरण।

होवै द्रोपद हांण, सरम धरम री, सांवरा॥

गूढ़ वचन गायोह, सुण पायौ जद सांवरो।

अंत वेग आयोह, चीर वधायौ चौगणो॥

हार्‌यो दुय हाथांह, दुस्सासण कर बळ दुसट।

जासी सिर जातांह, सैंस भुजा दे सांवरो॥

द्रोपद दक्कालह, दुसट—सभा विच दाखवै।

ल्यायो नंदलालाह, चीर—दुसाला चौगणा॥

खींचो खींचणहार, मन धोखो राखो मती।

समपे सरजणहार, सही बजाजी, सांवरो॥

सुणियो द्रोपद साद, करणाकर करणा करी।

आसी इळ लग आद, सो परवाड़ो, सांवरा॥

धरती पड़्यो ढिगास, अंबर सूं अंबर अड़्यो।

आयो पूरण आस, संपत घर ले सांवरो॥

संकट द्रोपद साद, जग—जामी तूं जाणियो।

धव रामेण फ्रियाद, स्त्रवणां कीधी, सांवरा॥

पेट छुरो कर पार, पटै काज सहणो पड़्यो।

उण दिन रो आधार, सांचो जाणूं, सांवरा॥

पांडव प्रतपाळेह, उजवाळे आदू विरद।

देखो, नंद—ग्वाळेह, काळे मो ऊपर करी॥

तन मन धन तारोह, भवसागर विच बूडतां।

धणियापण धारोह, सकव उबारो, सांवरा॥

बावन दूहा बणाय, द्रोपद करणा देखतां।

सांवरियो कर साय, रिजक दियो रामेण नैं॥

पायो जनम गुमानपुर, धर ढूंढाड़ह धाम।

दुगज गाम विनयेस दिय, नग्र सटावट नाम॥

आठ विवुध कुळ आद में, चारण वरण चकार।

कविया मम साखा कही, जिण मध जनम विचार॥

रामनाथ कर नाम है, लघूनाथ री लाज।

करणामह कविता करी, करो छिमा कविराज॥

नगन देख हरि नार कूं, दई चीर की लीर।

दस हजार गजबळ घट्यो, घट्यो दस गज चीर॥

स्रोत
  • पोथी : करणीजी री स्तुति ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया
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