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कविगण निज कलमां
मोहन आलोक
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कविगण
निज
कलमां,
बैठा
बेचै
वित्त
मैं।
करतब
सरै
कियां,
सत
साहित
रै
सरजण
रो॥
स्रोत
पोथी
: बानगी
,
सिरजक
: मोहन आलोक
,
प्रकाशक
: बोधि प्रकाशन
,
संस्करण
: प्रथम
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कवि