गरडी गंधारीह, जिण नै पूछौ जाय नै।

सो कहसी सारीह, क्रत अक्रत री कैरवां॥

भावार्थ:- जो वृद्धा गांधारी है, उसे जा कर पूछो। कौरवो के कार्याकार्य की वह सब बातें कह देगी। कैरवों को संबोधन मान कर तीसरे और चौथे चरण का यह अर्थ भी किया जा सकता है—

“हे कौरवों! कर्त्तव्याकर्त्तव्यके सम्बन्ध में वह सब बातें बतला देगी।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर
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