लौ या बिरियां लाख, धर थांरी थे ही घणी।
निंदित क्रित हकनाक, कुरुकुलभूखण मत करो॥
भावार्थछ:-लाख बार इस पृथ्वी को लो, आपकी ही यह पृथ्वी ठहरी और आप ही इसके स्वामी—(इसे बाँटे चाहे न बाँटे) किन्तु हे कुरुकुल भूषण! नाहक ही यह निंदित कृत्य क्योंकर रहे है, इसे न होने दीजिए।