लारै भगतां लाज, लंकागढ रघुपत लड़्या।

करण विभीखण काज, सिर दस काट्या सांवरा॥

भावार्थ:- भक्तों की लाज रखने के लिए लंकागढ़ में भगवान रामचन्द्र ने युद्ध किया था। हे कृष्ण अपने भक्त विभीषण के कार्य के लिए उन्होंने रावण के दस सिर काट डाले थे।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.)
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