जोवौ जेठाणीह, देराणी थैं देखल्यौ।

होवै लजहाणीह, बीती मो तो बीतसी॥

भावार्थ:- हे जेठानी! तुम देख लो और हे देवरानी! तुम भी देख लो आज मेरी लाज जा रही है, लेकिन याद रखना जो मुझ पर बीती है, वह तुम पर भी बीतेगी।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर
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