मिनिया मंजारीह, अगन प्रजाली ऊबर्‌या।

वरती मो बारीह, सुणैक बहरो साँवरा॥

भावार्थ:- आग जला देने पर भी बिल्ली के छोटे-छोटे बच्चे बच गये थे। मेरी बारी बीत चली। हे साँवरे! कुछ सुनते ही हो या बिल्कुल बहरे हो?

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.)
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