गंग भीनो गात, निरमळ जळ पावन नदी।

प्रांणी सूकरपात, जे किण दिस उड़ जावसी॥

स्रोत
  • पोथी : देविचरित (भाग -2) ,
  • सिरजक : बुधसिंह सिंढायच ,
  • संपादक : फतेहसिंह ,
  • प्रकाशक : निदेशक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम