सकुनी जीते सार, घण अमृत बिख घोलियौ।

होणहार री हार, करसी भारत रौ कदन॥

भावार्थ:- चौपड़ के खेल में विजयी होकर शकुनि ने घने अमृत में विष घोल दिया। भवितत्यतावश पांडवों की जो हार हो गई, उससे भारत का नाश हो जायगा।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर
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