निलजी कैरव नार, के ऊभी मुळक्या करै।

आसी कुटुँब उधार, देणा सो लेणा दुरस॥

भावार्थ:- हे निर्लज्ज कौरव स्त्रियो। क्या खड़ी खड़ी हँस रही हो। जो आज तुम मुझे दे रही हो, ठीक वही तुम्हें लेना होगा। कुटुम्ब में यह उधार पड़ेगा।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर
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