मिटसी सह मतिमंद, कलँक मिटसी भरत कुळ।

अंध हिया रा अंध, पूत दुसासण पाल रे॥

भावार्थ:- धृतराष्ट्र को संबोधित करती हुई द्रौपदी की उक्ति है— हे अन्ध! तुम केवल आँखों के ही अन्धे नहीं, हृदय के भी अन्धे हो। हे मति मन्द! सब कुछ नष्ट हो जायगा, किन्तु भरत कुल में नारी के अपमान का जो यह कलंक लग रहा है। यह कभी नहीं मिटेगा। अब भी किसी तरह अपने इस पुत्र दुशा:सन को इस जघन्य कृत्य से रोक।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर
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