पंडव जणिया पाँच, जिकण पेट थारौ जनम।

जीवत नाऽवै लाज, कैरव कच खैंचै करन॥

भावार्थ:- माता कुन्ती की जिस कोख से पाँच पाण्डवों का जन्म हुआ। उसी से ही कर्ण! तुम भी उत्पन्न हुए हो। आज यह कौरव (दु:शासन) अपने हाथों से मेरे बाल खींच रहा है। इस दृश्य को देखकर भी तुम्हें प्राण: धारण करते लज्जा नहीं आती, धिक्कार है तुम्हारे इस जीवन को।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर
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