अवह्वैती ह्वै आज, हुई आगै होण री।

कैरव करै अकाज, आज पितामह ईखतां॥

भावार्थ:- आज अनहोनी हो रही है, तो भूतकाल में कभी ऐसी घटना घटित हुई भविष्य में कभी घटित होगी। आज भीष्म पितामह के देखते हुए भी कौरव इस प्रकार का अकार्य कर रहे हैं।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर
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