व्रज राखी ब्रजराज, इंद्र गाज कर आवियौ।

लेवै खळ मो लाज, आज उबारौ ईसरा॥

भावार्थ:- जब व्रज पर इन्द्र गर्ज कर आया था तो हे व्रजराज! तुमने व्रज की रक्षा की थी। आज यह दुष्ट दु:शासन मेरी लाज ले रहा है; हे ईश्वर! मेरी रक्षा करो।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.)
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