प्रण पर बगसण प्राण, तृण सम नित ततपर रियो।
आजीवण आराण, परचंड किया प्रतापसी॥
धरम सनातन धार, असह निपट संकट सह्या।
अकबर रो अधिकार, पर न मान्यो प्रतापसी॥
हलदी घाट हरोळ, मेद पाट भिड़ियो मरद।
तुरकां पर खग तोल, पग रोपै परतापसी॥
अकबर रो अभिमान, मांन मिटावण मान रो।
जलम्यो जग महरांण, परमवीर परतापसी॥
अकबर घन अंधकार, पसर्यो भारत में प्रबळ।
लग्यो न जोर लगार, प्रगट्यो रवि प्रतापसी॥
तुरकां सूं जी तोड़, भिड़ियो मेवाड़ा भलो।
मुगलां रा दळ मोड़, पायो जस परतापसी॥
अवनिप हलै अपंग, बैसाखी अकबर बळां।
उभौ तदै ऊतंग, पग बळ एक प्रतापसी॥
कीधी थें कई वार, बिध बिध तलवारां थकी।
मुगलां नै मनवार, प्रेम धार परतापसी॥
राखी भल राणांह, मुख लाली मेवाड़ री।
मुगलज मुरझाणांह, पेख थनै परतापसी॥
वाही जद करवाल, आरज ध्रम पर जवन पति।
तद बणियो तूं ढाल, प्राक्रम निज परतापसी॥
पालो बन पड़ियोह, अकबर आशा—बेल पर।
चेतकड़ै चढीयोह, परम शूर परतापसी॥
भालो कर भ्राजेह, सिर छाजै सिरत्राण सूं।
लख बबरी लाजेह, पंचानन परतापसी॥
प्याला शोणित पाय, रण चंडी राजी करी।
पलचर दीया धपाय, पल अरि दे परतापसी॥
मातृभोम हित मोह, त्यागो सुख वैभव तणो।
विषयां में वळगोह, पेख्यो नह परतापसी॥
राखी खत्रवट रीत, ऊमर भख भख ऊमरां।
भयो न कद भयभीत, प्रणधारी परतापसी॥
परम धीर प्रणवीर, धरम धुरंधर वीरवर।
आफत मांय अधीर, पायो नंह परतापसी॥
पळ पळ दीना पांव, पुरखां रा पदचिह्न पर।
दियो न हीणै दाव, प्रसणां निज परतापसी॥
चाकर बण खितिपाल, पंड लागा जद पाळवा।
बखतां उण करवाल, पाणां ग्रही प्रतापसी॥
नीची करी न नाड़, राड़ कियां अरियां निडर।
भमियो बिहड़ पहाड़, प्रण निभाण परतापसी॥
डूंगर—डूंगर दौड़, ठौड़—ठौड़ रण ठांणिया।
शीशोद्यो सिरमौड़, पर न डिग्यो परतापसी॥
धरम गणिका धार, महिपत अकबर सूं मिळ्या।
रह्यो सुतंत्र उण वार, पावन एक प्रतापसी॥
मेटी थेंज मरोड़, मेदपाट! मुगलेश री।
क्षत्रिय कुळ सिरमौड़, प्रण न डिग्यो प्रतापसी॥
क्षत्रिय लाज—जहाज, बूडत अकबर उदधि मह।
केवट वर इण काज, प्रगट्यो भुव परतापसी॥
मिट्टी मांय मिलाय, मनसूबा मुगलेश रा।
हिय वेर्यां हहराय, परसिध भयो प्रतापसी॥
दया—धाम दीवांण, हिन्दू भांण महराण भल।
पयो पद परमांण, परम 'अजय' परतापसी॥