आसा तज आयाह, पाछा कौरव पावणा।

उण दिन रा दायाह, साझै मोसूं सांवरा॥

भावार्थ:- सब सबलों के बैठे हुए होने पर भी आज यह दुष्ट दु:शासन मुझ अबला की लाज ले रहा है। मेरी पुकार सुनते ही हे श्याम! इस वृद्धों की सभा पर वज्र डाल दो।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.)
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