भूख सिरीसी व्यथा बणाई, अन्न ओखद फरमाया।

खीर खांड रा इमरत मेवा, भूखा अंत सिराया।

जेठ महीणों खळ हर तपतो, अठै तीरथ न्हाया।

बिरै-बिरै रा मांय टहूका, मिरगा फिरै तिसाया।

सौमण सूतौ अळूझ्यो रैतो, आखर सूं सुळझाया।

ऊंचै अमलै कोयल बैठी, बोलै सबद सुवाया।

दूदै जी रा दरसण करतां, काया अति सुख पाया।

गुरु परताप ‘देवो’ बोलै, दाखविया जस गाया॥

स्रोत
  • पोथी : मरु-भारती (त्रैमासिक) जनवरी ,
  • सिरजक : सिद्ध देवोजी के सबद : सूर्यशंकर पारीक ,
  • संपादक : बसंतलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिड़ला एजूकेशन ट्रस्ट, पिलानी (राजस्थान)
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