गुरु रूप हमारा दाता हो, होरी खेल खिलावै।

रामचरणजी सतगुरु सिर पै, जिन संग फगवा पावै।

फागण में सब गुण तत जीतै, सब सन्तन मन भावै॥

राम रसायन अंम्रत प्याला, पीवै आप पिलावै।

छकि कै राम रंग में रंगिया, सबके रंग चढावै॥

सील सिंगार सहाजी तन ऊपर, ग्यान गुलाल मंगावै।

धीर हौद में गाल भली विधि, पेम पिचकारी बाह्वै॥

जत सत केसर अर्थ अरगजौ, भजन भाव मिलावै।

ऐसो रंग डारि के हरिजन, अपणा रंग रंगावै॥

राम पिया संग होरी खेलै, नोतम नेह बधावै।

ऐसा जन निर्मल निज प्यारा, भव जल पार लंघावै॥

खेलत होरी हरिजन ऐसी, राम अमीरस पावै।

आत्माराम जनां की संगति, आनंद अति दरसावै॥

स्रोत
  • पोथी : स्वामी श्री रूपदासजी 'अवधूत' की अनुभव - वाणी ,
  • संपादक : ब्रजेन्द कुमार सिंहल ,
  • प्रकाशक : संत उत्तमाराम कोमलराम 'रामस्नेही' रामद्वारा, इंद्रगढ़ -कोटा (राजस्थान) ,
  • संस्करण : प्रथम
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