(राग प्रभाती बिलावल)
खारी रे आ समें दुखारी, हाहा बड़ी हत्यारी रे।
मोटा घरां म्रजादा मिटगी, बंगळां रै सौ बारी रे।
गोला जुगळी मांय गई जद,नसल बिगड़ गई न्यारी रे॥
होटल मांई खाणौ हिळतां, बिटळां बुरी बिचारी रे।
मांनव धर्म शास्त्र री महिमा, सुरती नहीं समारी रे॥
घुड़दौड़ां सूं ढूंगा घसग्या, नामरदी फिर न्यारी रे।
लाखां रुपया लेखे लागा, कोई न लागी कारी रे॥
ख्यातव्यां बंद छोड खिड़कियां, धणियां टोपी धारी रे।
कमर बंदा बांदण री कवि नै, बिध इण आई बारी रे॥
अदालतां सूं होय आगती, पिरजा रोय पुकारी रे।
सूंक दुकांनां मँडी सरासर, धौळै दिवस अंधारी रे॥
फिर जंगळायत कियौ फायदौ, जुल्म कायदौ जारी रे।
टोगड़ियां रा गळा टूंपतां, भयौ कष्ट अति भारी रे॥
छत्री धर्म छोड़ियौ छैलां, चौड़े हुय व्यभिचारी रे।
परण्योड़ी रै पास न पौढ़ै, पातर लागै प्यारी रे॥
दुख सतियां रौ सुणै न दिलकी, बिलकी फिरै बिचारी रे।
धणी जीवतां देखी घरां में, भोगै रंडापौ भारी रे॥
रजपूतांणी रहै रिजक बिन, धर्म पतीब्रत धारी रे।
बिदरांणी परदां में बैठी, किसब कमावै सारी रे॥
निरोगता रौ नास करें नित, निरख पराई नारी रे।
ऊमरदांन डूबसी आंधां, कोई न लागे कारी रे॥